डबलिन

जब वे पहली बार मिले, तो यह एक संयोग जैसा लगा, लेकिन बाद में तीनों को छोटे-छोटे विवरण याद रहे—जैसे वे पहले से कोई संकेत रहे हों।
यह यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन (UCD) में पहले वर्ष का एक वैकल्पिक विषय था, जिसका नाम था “Religion and the Modern World.”
ट्यूटर ने उन्हें एक ही समूह में रखा: आरव भारत से (हिंदू), यासिर सूडान से (मुसलमान), और ब्रिड टोरी द्वीप से (कैथोलिक)।
डबलिन, जो परायों को अक्सर सहज रूप से स्वीकार कर लेता है, ने उन्हें एक ही मेज़ पर बिठा दिया।
क्लास के बाद वे स्टूडेंट सेंटर के रेस्तराँ में गए, क्योंकि बारिश हो रही थी और कोई भी अपने हॉस्टल लौटना नहीं चाहता था।
शुरुआत से ही सब कुछ आसान था।
तीनों अपने घरों से दूर थे, तीनों ऐसे स्थानों से आए थे जहाँ धर्म कोई रविवार की आदत नहीं बल्कि जीवन की हवा था, और तीनों को यह थोड़ा मज़ेदार लगा कि वे एक ऐसे कोर्स में नामांकित थे जो “religious identity” के बारे में ऐसे बात करता था जैसे वह कोई हल्का जैकेट हो।
“So,” ब्रिड ने अपनी चाय हिलाते हुए कहा, “is it weird for you to drink a beer here?”
“I don’t drink,” यासिर मुस्कराया, “Not even for Irish hospitality.”
“Fair,” आरव ने कहा, “I’ll drink for all of us, then.”
वे हँसे।
पूरा सेमेस्टर ऐसा ही बीता — हल्का, अंतरराष्ट्रीय, और इस विश्वास से भरा कि असली समस्याएँ कहीं और हैं।
उन्होंने त्योहारों की तुलना की: दीवाली, ईद, क्रिसमस।
खाने की तुलना की।
आयरिश मौसम, बसों और इस बात पर हँसे कि UCD “लगभग विकलो में” है।
उन्हें यह नहीं दिखा कि केवल अंग्रेज़ी में बात करते हुए वे कितनी दूरी बना रहे थे।
अंग्रेज़ी वह सतह थी जिस पर वे सब तैर रहे थे; नीचे कुछ और छिपा था, प्रतीक्षा करता हुआ।
परीक्षाएँ आईं, फिर मई, और फिर सबसे सस्ती उड़ानें अपने-अपने घरों की ओर।

जयपुर सबसे पहले उसे गर्मी ने झटका दिया, फिर रंगों ने। डबलिन का मई महीना कोमल और हरा था; जयपुर का मई कठोर रोशनी और गेंदे के फूलों का पीला।
माँ ने दरवाज़े पर ही उसे बाँहों में भर लिया।
“कैसा रहा, डबलिन?”
“अच्छा था, माँ. सब ठीक था।”
पिता कमरे से निकले, चश्मा नाक पर टिकाए हुए।
“पढ़ाई ठीक चल रही है?”
“हाँ, पापा. बहुत अच्छा चल रहा है. वहाँ बहुत डाइवर्सिटी है.”
रात के खाने पर बातें हल्की थीं — फीस, कोर्स, आयरिश खाना।
लेकिन २०२५ की भारत ज़्यादा ऊँची आवाज़ों वाला देश था, और उसके माता-पिता भी उन लहरों से अछूते नहीं थे।
दूसरे दिन मामा आए — वे आदमी जो बहुत पैनल शो देखते थे।
“वहाँ हिंदू कितने हैं? या सब ईसाई और मुसलमान?”
“वहाँ सब हैं, मामा. और कोई पूछता भी नहीं.”
“अच्छा? पूछना चाहिए. धर्म छिपाने की चीज़ नहीं है. तुम मंदिर जाते हो वहाँ?”
“कभी-कभी. बस एक छोटा-सा मंदिर है.”
“जाया करो. अपनी पहचान याद रखनी चाहिए. ये सब वेस्ट जाके बच्चे भूल जाते हैं.”
माँ सिर हिलाती रही, ज़ोर से नहीं, लेकिन सहमति में।
रात में वह उसके कमरे में आईं, बिस्तर के किनारे बैठीं।
“देखो, आरव, दोस्त बनाओ, सबके साथ रहो. लेकिन अपनी बात समझौता करके नहीं. तुम हिंदू हो. ये तुम्हें वहाँ कोई नहीं बताएगा.”
आरव ने सिर हिला दिया, क्योंकि सिर हिलाना आसान था।
लेकिन उसके मन में डबलिन का वह दृश्य घूम रहा था — जब यासिर रमज़ान में रोज़ा रख रहा था, और उसने उसके सामने खाना नहीं खाया था,
और ब्रिड ने मुस्कराते हुए पूछा था, “What time will you break it? I’ll come with you.”
तब सब कुछ सीधा-सादा लगा था।
अब, जयपुर की टीवी और अख़बारों के बीच, वही यादें थोड़ी अजनबी लगने लगीं।
वह खुद को समझाने लगा कि शायद यासिर का एक वाक्य — “worshipping images is very different from worshipping God” — कभी केवल अकादमिक टिप्पणी नहीं थी। अब वह बात व्यक्तिगत लगती थी।


उम्दुरमान ख़ारतूम धूल और उजाले से भरा था, और जब यासिर हवाई अड्डे से निकला तो उसे नील और शहर की मिली-जुली गंध ने घेर लिया।
माँ ने उसे गले लगाया, जैसे बहुत समय बाद कोई खोई हुई चीज़ मिल गई हो।
“كيف كانت إيرلندا يا ياسر؟”

“كانت جميلة يا أمي. باردة، لكن جميلة.”

“أكلتم الحلال؟”

“نعم، أغلب الوقت. في مطعم تركي قريب من الجامعة.”

उसके पिता, जो आँगन में अख़बार पढ़ रहे थे, बोले बिना ऊपर देखने लगे।
“تصلي؟”

“أصلي، يا أبي.”

“الحمد لله.”

शाम को जब रिश्तेदार आए तो गपशप हल्की थी — ट्रैफ़िक, मौसम, पड़ोसी। लेकिन जब यासिर ने कहा कि उसके दो अच्छे दोस्त हैं, एक भारत से और एक आयरलैंड से, तब चचेरे भाई तारिक ने भौंहें चढ़ाईं।
“هندوسي؟ يعني يعبد الأصنام؟”

“لا تتكلم هكذا، يا طارق. هو محترم.”

“أنا لا أهاجمه، لكن هذا شرك.”

पिता कुछ नहीं बोले, पर ध्यान से सुनते रहे।
रात में उन्होंने कहा:
“يا ياسر، كن لطيفاً مع الجميع، لكن لا تجعلهم يغيّرون دينك في رأسك. الكفر كفر حتى لو كان صاحبه طيباً.”

यासिर ने जवाब दिया,
“طبعاً يا أبي.”

उसने सच में यही चाहा कि वह अपने विश्वास के प्रति ईमानदार रहे।
उसे याद आया कि कैसे डबलिन में उसने रमज़ान में रोज़ा रखा था, और आरव ने उसके सामने खाना नहीं खाया था,
और ब्रिड ने मुस्कराते हुए कहा था, “What time will you break it? I’ll come with you.”
वे सभी सम्मानजनक थे — तब ऐसा लगा था कि यही असली दोस्ती है।
लेकिन अब, जब चारों ओर वही भाषा गूँज रही थी जिसमें उसका ईश्वर भी बोलता था,
उसे लगा कि शायद वह बहुत सहज हो गया था, शायद उसे ज़्यादा सावधान रहना चाहिए था।
उसने डबलिन की बातचीतों को दोहराना शुरू किया — कहीं उसने मज़ाक में यह तो नहीं कहा था, “a million gods!”
और अब उसे लगा जैसे उसने मज़ाक में भी कुफ़्र को हल्का कर दिया था। उसने मन में वादा किया — जब वह लौटेगा, तो ज़्यादा स्पष्ट रहेगा।


टोरी द्वीप और डबलिन में पुनर्मिलन

फ़ेरी की सवारी हमेशा ब्रिड को रीसेट कर देती थी।
मुख्य भूमि धीरे-धीरे पीछे जाती, और टोरी द्वीप उसकी ओर बढ़ता।
नमकीन हवा, समुद्र की नमी और घर की गंध — सब एक साथ लौट आते थे।
उसके पिता घाट पर इंतज़ार कर रहे थे।
“Conas mar atá tú, a Bhríd?”
“Tá mé go maith, a Dhaid. Bhí sé fada.”
“Céard é an coláiste ansin i mBaile Átha Cliath? An bhfuil tú ag freastal ar an Aifreann fós?”
“Tá… uaireanta.”
“Níl sé deacair má tá sé tábhachtach.”

घर पहुँचने पर माँ ने पूछा कि लड़के कैसे हैं, किराया कितना है, खाना ढंग से खा रही हो या नहीं। पर बातचीत में धर्म भी आ ही गया, जैसे हर बार आता था।
“Chonaic mé ar an nuacht faoi na hIndiaigh agus na Moslamaigh ag troid.”
“Tá cara agam Indiach. Agus Moslamach freisin. Tá siad breá.”
“B’fhéidir, ach ní hionann sin is a gcreideamh a bheith fíor.”
रविवार को मास आधा आयरिश में हुआ, आधा अंग्रेज़ी में — वही चेहरे, वही आवाज़ें जो उसने बचपन से देखी-सुनी थीं।
मास के बाद एक बूढ़ी पड़ोसी ने पूछा:
“An bhfuil tú fós ag caitheamh do chroise?”
“Uaireanta.”
“Ná déan dearmad. Tá orainn seasamh dár gcreideamh.”

रात को उसने अपने कमरे की खिड़की से अटलांटिक को देखा।
उसे याद आया कि डबलिन में वह “आयरिश लड़की” थी — स्थानीय, जो बसों का रास्ता जानती थी,
जो जी.ए.ए. (GAA) समझा सकती थी, और जो अपने धर्म को हल्के-फुल्के ढंग से बताती थी। पर यहाँ, धर्म हल्का नहीं था; वह सही था।
और अगर कुछ सही है, तो बाकी सब गलत हैं — यह बात किसी ने ज़ोर से नहीं कही, पर उसकी संरचना उसके मन में बस गई।
उसने सोचा, जब वह डबलिन लौटेगी, तो खुद को सँभाल कर रखेगी — अपने भीतर वही केंद्र रखेगी, चाहे बाहर कितनी भी दोस्तियाँ क्यों न हों।


डबलिन में वापसी

सितंबर की डबलिन फिर से गीले पत्तों, कॉपी-किताबों और नई शुरुआत की गंध से भरी थी।
तीनों कैंपस के कॉरिडोर में फिर मिले, और एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे गर्मी हुई ही नहीं थी।
“Hey!” आरव ने कहा, ब्रिड को गले लगाते हुए।
“Hey yourself. You look browner.”
“You look... windswept.”
“Island life.”
यासिर भी वहाँ पहुँचा, बैग एक कंधे पर डाला हुआ।
“Assalamu alaikum,” उसने सहजता से कहा, फिर रुक गया। “Sorry. Hi. How are you?”
उन्होंने कॉफ़ी ली, उड़ानों, परिवारों और गर्मी की शिकायतों पर बातें कीं।
ऊपरी तौर पर सब वैसा ही था, लेकिन छोटे-छोटे बदलाव दिखने लगे।
जब बरिस्ता ने पूछा, “Any pastries?”
यासिर ने कहा, “Is there gelatine in any of those?”
वह पहले कभी इतनी स्पष्टता से नहीं पूछता था।
आरव ने कहा, “I found a temple a bit further out. I think I’ll go more this year.”
ब्रिड ने जवाब दिया, “Oh, fair play.”
और जब ब्रिड ने कहा कि वह रविवार को डॉनीब्रूक के चर्च में जाएगी,
तो उसने जोड़ा, “You two should come sometime. It’s nice.”
सब कुछ शिष्ट था, सब कुछ सभ्य।
पर हर वाक्य दूसरे की गर्मी की गूँज के साथ सुनाई दे रहा था:
“I’ll go more this year” — मुझे अपनी पहचान जतानी है।
“Is there gelatine?” — तुम्हारा खाना पवित्र नहीं है।
“You should come to Mass” — हमारा ही सामान्य है।
उन्हें फिर से उसी कोर्स में एक साथ रखा गया —“Religion, Conflict and Coexistence.” इस बार विषय था “Shared Sacred Spaces.”
वे लाइब्रेरी में मिले।
“So,” आरव ने लैपटॉप खोलते हुए कहा, “we could do something on Sufis and Hindus sharing shrines in India. That’s classic.”
यासिर का चेहरा तन गया।
“I’m not sure that’s a good example,” उसने कहा, “some of those practices... they’re not really Islamic.”
“It’s a historical example,” आरव ने सहजता से कहा। “That’s the whole point — people of different faiths going to the same place.”
“Yes, but if it includes shirk,” यासिर बोला, “we can’t present it like it’s ideal.”
उसने “शिर्क” ऐसा कहा जैसे सब जानते हों।
आरव जानता था, पर मुस्कराकर बोला, “So you’re saying Hindus going to a dargah is... wrong?”
“I’m saying from an Islamic perspective—”
“From your perspective,” आरव ने बीच में कहा।
ब्रिड ने बात बदलने की कोशिश की।
“What about Lough Derg? We could do an Irish example.”
लेकिन माहौल बदल चुका था।
बहस ऊँची नहीं थी, पर तनी हुई थी।
“I didn’t mean to insult your religion,” यासिर ने कहा। “But if we are talking about coexistence, we should still say what is—”
“What is right and wrong?” आरव ने कहा। “That’s easy to say when you think you have the only God.”
“It is not me who thinks,” यासिर बोला, “It is Allah.”
कुछ क्षणों के लिए सब चुप हो गए।
पास की मेज़ों पर बैठे छात्र देखने लगे।
ब्रिड ने साँस ली।
“Lads,” उसने कहा, “We’re going to get a terrible mark if we can’t just write about a pilgrimage site.”
आरव ने लैपटॉप ज़रा ज़ोर से बंद किया।
“Fine. We can do your Irish one.”
“It’s not mine,” ब्रिड ने कहा, पर देर हो चुकी थी। “It’s just one I know.”
आरव ने उसे देखा।
“You went home, didn’t you?”
“Of course I went home.”
“And they told you you’re right.”
“Well,” उसने कहा, रक्षात्मक होकर, “aren’t your people telling you you’re right?”
आरव हँसा, छोटा और कड़वा।
“Yeah. That’s the problem.”
यासिर ने दोनों की ओर देखा।
“In Sudan,” उसने धीरे से कहा, “they said the same thing. Be kind, but don’t let them change you.”
“In Jaipur too,” आरव ने कहा।
“On Tory too,” ब्रिड ने कहा।
वे एक-दूसरे को देखते रहे, जैसे पहली बार सचमुच देख रहे हों — कमरों में बैठे परिवारों की परछाइयाँ, टीवी की बहसें, पुरोहित, इमाम, पंडित — सब एक पल को उनके बीच आ खड़े हुए।
ब्रिड ने धीरे से कहा,
“Okay, then maybe that’s the project.”
आरव ने भौंहें उठाईं।
“What?”
“We write about how people try to share spaces, but the stuff from home comes with them. Like us.”
यासिर ने सिर हिलाया।
“That’s not a bad angle. We can show the ideal and the reality.”
“And we don’t have to agree whose version is right,” ब्रिड ने कहा।
उन्होंने टाइप करना शुरू किया — पहले असहजता से, फिर कुछ सहजता के साथ। उन्होंने लफ डर्ग का उदाहरण रखा, सूफी दरगाहों और सूडानी मज़ारों का भी ज़िक्र किया, और एक पैराग्राफ लिखा — सावधानी से, दूरी बनाकर — कि कैसे डायस्पोरा छात्र अपने देशों की सीमाएँ साथ ले आते हैं, भले वे सेक्युलर विश्वविद्यालयों में हों।
कहीं नहीं लिखा: यह सब पिछले हफ्ते UCD की लाइब्रेरी में हमारे साथ हुआ। पर वह बात पंक्तियों के बीच में थी।


अंतिम अनुच्छेद

उस सेमेस्टर में वे पहले जैसे सहज नहीं रहे। वे कभी-कभी कॉफ़ी के लिए मिलते, पर अब हर कोई अपने-अपने समूहों में थोड़ा और जुड़ गया था — इंडियन सोसाइटी, इस्लामिक सोसाइटी, कुमन गैलाख। किसी दुश्मनी से नहीं, बल्कि अपने को फिर से मजबूत करने के लिए।
फिर भी, बारिश के दिनों में वे अब भी टेक्स्ट करते थे:
“In the café. You around?”
“Ten mins.”
“Be there.”

हमेशा अंग्रेज़ी में। क्योंकि वही एक भाषा थी जिसे उनके घरों में कोई नहीं सुन सकता था — और वही एक भाषा जो खुद को केंद्र नहीं मानती थी।


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